तेरे सिवा....
रात काली श्याही सी है...
और दिन में कुछ दिखता नहीं...तेरे सिवा...!
सपने कुछ धूमिल से है...
और खुली पलकें कुछ नम सी हैं... तेरे सिवा...!
हकीकत कुछ नाराज़ सी है...
और अरमानों को कुछ सूजता नहीं... तेरे सिवा...!
दिल में दर्द कम नहीं है...
और इसकी कोई दवा नहीं है... तेरे सिवा...!
तू मेरी हो न सकी है...
और मै किसीका 'ना' होना चाहूँ ... तेरे सिवा...!
Vins :)
mast hai mota bhai ;-)...
जवाब देंहटाएंदिल में दर्द कम नहीं है...
और इसकी कोई दवा नहीं है... तेरे सिवा...!
तू मेरी हो न सकी है...
और मै किसीका 'ना' होना चाहूँ ... तेरे सिवा...!
jitni bhi baar pado...it remains reverberating
जवाब देंहटाएंSahi hain..!!
जवाब देंहटाएंkya baat hai...
जवाब देंहटाएंnikhaar aa raha hai...
aur aayega....dheere dheere...
वाह...आपका ये अंदाज़ बहुत दिलकश है...अच्छा लगा...लिखते रहिये...
जवाब देंहटाएंनीरज
bohot bohot dhanyawaad iss hausla-afjaee key liye... :)
जवाब देंहटाएंकौन लिख पाया ये दास्तां,श्याम,
जवाब देंहटाएंआशिके-दर्दे-दिल के सिवा ।
Aaaye haaii...dil jeet liya aapne...
जवाब देंहटाएंhey vinish i read this for the first time.....sahi hai, aap to multitalented ho :-)
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