शिव-गंगा का अभिमान हूँ, बुद्ध का पहला ज्ञान हूँ,
मुक्ति का समाधान हूँ, संतो का निवास_स्थान हूँ,
मै अजय, अमर, अभेद हूँ, मै संस्कृति हूँ,
मै बनारस हूँ !
सिल्क का व्यापार हूँ, पान का बाज़ार हूँ,
लंगडे की मिठास हूँ, ठंडई की भाँग हूँ,
कचौड़ी की चटकार हूँ, जलेबी का स्वाद हूँ,
मै बनारस हूँ !
मालवीय का विश्वास हूँ, प्रेमचंद का उपन्यास हूँ,
शास्त्री की आस हूँ, बिरजू महाराज की झंकार हूँ,
तुलसी_कबीर के दोहे हूँ, बिस्मिल्लाह की शेहनाई हूँ,
मै बनारस हूँ !
चार विद्यापीठों से शोभाएमान हूँ,
सारनाथ का स्तम्भ हूँ, विंध्याचल का पहाड़ हूँ,
सहस्त्र मंदिरों की ज्योति हूँ, दरगाह, गिरिजा सा पाक हूँ,
मै बनारस हूँ !
लेकिन...
नेताओं की भीख से, गुंडों की रीत से.
हिन्दू-मुस्लिम में खींच से, प्रदूषण और पीक से,
मै परेशान हूँ ....... मै बनारस हूँ !
A tribute to my home town... I wish someone somewhere responsible authority read the last lines and give Banaras "mukti" from traffic chaos, extortion & pollution...
Vins