सोमवार, 24 अक्तूबर 2011

अधुरा ख्वाब....!!

 
 
अभी कल रात ही तो मिले थे तुमसे, कुछ नए रिश्तों की आगाज़ भी हुई. |
 
तन्हाई की इस शाम में, कुछ बाहार चाँद की हुई. | 
 
कितना कुछ कहते, कितना कुछ सुनते, मगर नजाने यह सुबह फिर कहाँ से हुई. ||

रविवार, 16 अक्तूबर 2011

कमबख्त ये अरमान...!!!

 
कुछ कहे - कुछ अनकहे, हालात से जूझते ये अरमान...
कभी पलकों में सिमटे, मुस्कानों में लिपटे, हर वक़्त कुछ टूटते ये अरमान...
दरीचों में, बगीचों में, शाम-ओ-सुबह में, एक परछाई को दुढ़ते ये अरमान...
मदमस्त हवाओं के इन झोको में, कुछ उलझी जुल्फों को सुलझाने के अरमान...
 
तमन्नाओं का जाल... कमबख्त ये अरमान...!!!