बुधवार, 1 अगस्त 2012

अभी और जीना है ....!


वक़्त कुछ देर और ठेहेर जाता अगर, 
तू धुंधला ही सही, मगर नज़र आता अगर,
वफ़ा की राह पर कुछ कदम और चल पाते शायद,
रोक लिया होता, जब जाने का ज़िक्र किया था तुमने, अगर....

कितना कुछ रह गया था कहने और सुनने को अभी,
आँखों ने कहाँ भर के बातें करी थी अभी,
कुछ जज्बातों के ताले खोलने रह गए थे अभी,
ठेहेर जाते की हम और जीना चाहते थे अभी...

छोड़ रहें हैं तुम्हे और खुद को अब किस्मत के हवाले,
बन जाएँ शायद, या गुमनान फिरें मारे मारे,
दुआ है रब से कुछ ताल-मेल कर दे वो ऐसा,
हर मुश्किल तुम्हारी, हमसे गुज़र कर जाये हमेशा ...


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