मंगलवार, 23 नवंबर 2010

जब हम बच्चे अच्छे थे...

जब माँ से हर रोज़ कुछ नया खिलाने को कहते थे...

जब पापा देर से घर आ हमसे स्कूल की बातें पूछा करते थे...

जब पतंग उड़ाने में उँगलियाँ काट, बा-काटे कहते थे...

जब बिजली गुल, तब पंखा छोड़, लुक्का-छिप्पी खेला करते थे...

जब राजा-रानी-चोर-सिपाही कितने सचे और पैसे, झूट लगा करते थे...

जब पकड़म-पकड़ाई और चेन-चेन में दोस्तों को कस के थामा करते थे...

जब रविवार की रंगोली को पूरे हफ्ते गाया करते थे...

जब रामलीला के राम को हम सच का राम समझते थे...

जब हम बच्चे अच्छे थे...

आज खेलने को खेल भी हैं और मन बहलाने के साजो-सामान...

पर छूट गए उन गलियों में कुछ लम्हे और मेरे दोस्त तमाम...

4 टिप्‍पणियां: