सोमवार, 1 नवंबर 2010

कभी जिंदगी बीता दी - कभी एक नज़र काफी थी...

कभी जिंदगी बीता दी और कभी एक नज़र काफी थी...
तुम हो तो हर सुबह कुछ नयी सी है...
वरना कोन सी हसरते बाकी थी...


जाने अनजाने में यूहीं, ठेस पहुंचाई होगी,
वर्ना तुमको भी खफा करने की कहाँ मजाल बाकी थी...


ऐ खुदा अब ना लेना, तू मेरे गुनाहों का हिसाब,
रोज़ अदालत में खड़े होते हैं, अब क्या तेरी सज़ा भी बाकी थी...


दोस्त तेरे साथ का... इस जिंदगी का... "शुक्रिया"...!
"शुक्रिया" उस हर पल का जिसकी आरज़ू ही काफी थी...


Vins :)

7 टिप्‍पणियां:

  1. baaki tareefein to bahut kee hongi humne....
    aapki rachna pe khoobsurati ki misaal dena baaki thi..

    aafareen!

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  2. vinish,

    aise likhoge tho biwi khoon bhi maaf kar de :)

    aafareen!

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  3. "शुक्रिया" उस हर पल का जिसकी आरज़ू ही काफी थी...

    बेहतरीन :-)

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